Saturday, January 19, 2013

GAJ FUT INCH






गज फुट इंच

निर्देशक के बारे में - 

दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में जन्मे रवीन्द्र गोयल का बचपन और शिक्षा-दीक्षा नया बांस के स्कूल से प्रारम्भ हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से संस्कृत विषय में स्नातक विशेष और फिर हरियाणा, हिसार के गुरू जम्बेश्वर विश्वविद्यालय से जनसंचार विषय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। आपको हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू और पंजाबी भाषाओं का ज्ञान है।

रंगमंच की शुरूआत किसी भी दूसरे स्कूली बच्चे की तरह स्कूल से ही हुई और फिर अरविंद गौड, शीला भाटिया, भानु भारती, सत्यब्रत राउत, संजय उपाध्याय, कृष्णकांत, सौरभ शुक्ल, संजीव मेहरा और जे. पी. सिंह जैसी रंगमंच की कुछ दूसरी मशहूर शख्सियत से साथ काम करने का अनुभव हुआ। जाने-माने नाट्य-निर्देशक इब्राहिम अल्काज़ी द्वारा संचालित चार वर्षीय अत्याधुनिक अभिनय प्रशिक्षण ने जीवन को एक नए मायने दिए और ज़िन्दगी में जीने का मतलब सिखाया।

भारत मां की लोरी, अद्भुत त्याग, विदेशी आया, लड़ाई, बिन बाती के दीप, एक और द्रोणाचार्य, मूर्तिकार, पढ़ना लिखना सीखो, दर्द आएगा दबे पांव, मुक़द्दर, दी रायल हंट ऑफ़ दी सन, स्ट्रीटकार नेम्ड डिज़ायर, थ्री ग्रीक ट्रेजेडीज़, बल्दे टिब्बे और एक सपने की मौत जैसे नाटकों में अभिनय किया। वहीं विदेशी आया, बिन बाती के दीप, एक और द्रोणाचार्य, मूर्तिकार, पढ़ना लिखना सीखो, नींद क्यों रात भर नहीं आती, अण्डे के छिलके और पंचम वेद जैसे नाटकों को निर्देशित भी किया। 


Friday, January 18, 2013

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गज फुट इंच

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गज फुट इंच 

लखनऊ के रहने वाले के. पी. सक्सेना एक विख्यात लेखक होने के साथ-साथ एक सफ़ल व्यंगकार, स्तम्भकार और नाट्य लेखक एवं कवि हैं। उन्होने कुछ समय रेलवे कर्मचारी के तौर पर भी काम किया लेकिन रुझान शुरू से ही लेखन की ओर रहा और पत्र पत्रिकाओं में लगातार लिखते रहे। उन्होने करीब-करीब देश की हर प्रतिष्ठित पत्रिका के लिए लिखा है। कोई पत्थर से ना मारे मेरे आपकी पहली प्रकाशित व्यंग्य पुस्तक थी जो 1982 में छपी। अपने अलग अंदाज़ की वजह से आप हास्य कवि सम्मेलनों के सबसे चर्चित कवि हैं। तीन भारतीय भाषाओं (हिन्दी, उर्दू और अवधि) पर आपकी गज़ब पकड़ है। साहित्य के क्षेत्र में आपके विशिष्ट योगदान को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2000 में आपको पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।

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‘गज-फुट-इंच’
नाटक की पृष्ठभूमि एक कपड़े का कारोबार करने वाले परिवार की है जिनकी ज़िन्दगी में व्यापार और मुनाफ़ा ही सबकुछ है। आज के हाईटेक हो चुके जीवन में ऐसे भी चंद लोग हैं जिनका जीवन दुकानदारी और मुनाफ़े के जमा-खर्च में सादा स्लेट सा रह गया। प्यार, मोहब्बत, भावनाओं जैसी बातों से कभी उनका वास्ता पड़ा ही नहीं। उनकी ज़िन्दगी मुनाफ़े से इतर कुछ नहीं। नाटक के दौरान पति-पत्नी और नायक-नायिका के बीच होने वाली बातचीत और परिस्थितियां, निसंदेह दर्शकों को गुदगुदाने का काम करेंगी।

नाटक ये सबक भी देता है कि इंसान को समय के साथ क़दम मिलाकर चलना ही होगा वरना वक़्त बहुत आगे निकल जाएगा और हम बहुत पीछे रह जाएंगे। हां ये भी ध्यान रखना होगा कि इस भागमभाग और धक्कम पेली में कहीं इंसानियत ना खोने पाए क्योंकि सबसे बड़ा ख़तरा इसी के खोने का है। समय की ज़रूरत को देखते हुए कुछ छोटे-मोटे बदलाव किए गए हैं लेकिन मूल स्क्रिप्ट वही है जो लेखक ने लिखी है।

आज भी ढूंढने पर टिल्लू जैसे नौजवान कहीं ना कहीं, किसी ना किसी रूप में मिल ही जाएंगे। लेकिन ये भी उतना ही बड़ा सच है कि ऐसे लोगों को सच्चा प्यार करने वाला, वो जैसे हैं, उन्हें उसी रूप में स्वीकार करने वाला भी कोई ना कोई मिल ही जाता है। ज़रूरत है तो एक सकारात्मक और सच्ची सोच की।


Tuesday, January 08, 2013

GAJ FUT INCH

A NEW PLAY - 

GAJ - FUT - INCH

Will perform in Maharashtra Mandal, Chobey Colony on 14th January, 2013 at 7 p.m.