Friday, June 04, 2010

सब मन भाया ‘टूरा रिक्शावाला’



किसी भी प्रदेश या देश के विकास में कला और संस्कृति का बहुत अहम योगदान होता है। फ़िल्में इसका आयना होती हैं और कुछ इसी की छाया मिली इस शुक्रवार(04 मई, 2010) को रिलीज़ हुई सतीश जैन निर्देशित छत्तीसगढी फिल्म ‘टूरा रिक्शावाला’ में।

फ़िल्म की कहानी किसी भी आम मुंबईया फिल्म की प्रेम कहानी से कुछ बहुत ज़्यादा अलग नहीं है लेकिन निर्देशक ने अपने हुनर से इसे आकर्षक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी। छत्तीसगढ की अलग-अलग जगहों का अच्छा फिल्मांकन किया गया है। फ़िल्म में लवस्टोरी, कामेडी, एक्शन और इमोशन यानि दर्शकों को बांधे रखने वाले वो तमाम मसाला या फार्मूला मौजूद हैं जो एक फिल्म में होने चाहिए। हां द्विअर्थी संवादों को कुछ कम किया जा सकता था।



फ़िल्म को रायपुर में प्रभात टाकिज और आर.के. माल के ‘गिल्टज़’ मल्टीप्लेक्स में एक साथ रिलीज़ किया गया है। यह पहला मौक़ा है जब किसी छत्तीसगढी फ़िल्म को मल्टीप्लेक्स में दिखाया जा रहा है। निश्चित ही यह छत्तीसगढी फिल्मों के विकास और भविष्य में एक महत्वपूर्ण क़दम साबित होगा। राजनांदगांव, धमतरी, कवर्धा, बालोद, दुर्ग ज़िलों में चार जून से रिलीज़ किया जाएगा।



फ़िल्म के हीरो प्रकाश अवस्थी की शायद यह पहली सोलो फ़िल्म है और इसमें उनकी मेहनत और काम दिखता है। नायिका शिखा ने बेहतरीन काम किया। उनके चेहरे और अभिनय में ताज़गी और मासूमियत दोनो दिखाई देती है। उनमें भविष्य की एक अच्छी अदाकारा की झलक नज़र आती है। खलनायक बने अनिल शर्मा ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है। दूसरे कलाकारों रजनीश झांझी, प्रदीप शर्मा, पुष्पेन्द्र सिंह, विक्रम राज, पुष्पांजलि शर्मा, भैयालाल हेडऊ, हेमलाल कौशल के अलावा बाल कलाकार आदेश ने अच्छा काम किया। शैलेन्द्रधर दीवान ने संपादन के ज़रिए फिल्म की गति को कहीं भी कमज़ोर नहीं पडने दिया और फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में सफ़ल रहती है। तोरन राजपूत का अनुभव उनके कैमरावर्क को देखने से साफ़ पता चलता है। उन्होने फिल्म के इस सबसे महत्वपूर्ण उपकरण के इस्तेमाल से दृश्यों को निसंदेह काफी प्रभावी तरीक़े से फिल्माया है। गीत कुबेर गीतपरिहा ने लिखे हैं और संगीत सुनील सोनी ने दिया है। संगीत मधुर है पर बालीवुड की फिल्मों से ज़्यादा प्रेरित लगता है लेकिन अल्का एवं छाया चंद्राकर, सुनील सोनी और गीता दीवाकर की सुमधुर आवाज़ों ने इन धुनों को और खूबसूरत बना दिया। निशांत और दिलीप ने बढिया कोरियोग्राफी की है।


फिल्म के निर्देशक सतीश जैन इससे पहले ‘मोर छंइहा भुइंया’, ‘झन भूलो मां बाप ला’ और मया जैसी तीन सिल्वर जुबली फिल्में दे चुके हैं। कुल मिलाकर फिल्म को एक मनोरंजक फ़िल्म कहा जा सकता है और परिवार के साथ देखा जा सकता है।

3 comments:

Rohit Singh said...

अच्छा तो तुम भी यहां हो। पर भईए कुछ हो या न हो दोस्तो को भूलने की बहुत बड़ी बीमारी है। जिंदगी के कई रंग देखे साथ. वहां जाकर भूल गए। अब सुधर जाओ। और सीधे सीधे फोन पर आ जाओ।

ravindra goyal said...

भईया पहले तनिक फून नंबर तो बतलावो। आखिर कहां फून घुमाएं, अब तुम ही कहो जाएं तो कहां जाएं।

Rahul Singh said...

anuj ke baad agla number prakash ka hi hai. wo wajib hakdar bhi hai.