Sunday, April 04, 2010

अर्ज़ है . . .







बस इतनी अर्ज़ हमारी है!





ज़हनों से हटे झुर्री ना सही
पर मन तो बच्चा हो जाए
जंगल पे नहीं दावा हमको
इक पेड तो सच्चा हो जाए
ये सोच के नाटक करते हैं
शायद कुछ अच्छा हो जाए
अब चेहरा बदलो या शीशा
ये आपकी ज़िम्मेदारी है
अच्छा सोचो, अच्छा बोलो
बस इतनी अर्ज़ हमारी है।

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