Sunday, May 09, 2010

मां ! तुझसा नहीं कोई रिश्ता



लो एक बार फिर से आ गया मां-दिवस
एक बार फिर से सुबह सुबह दी मुबारक़बाद उन्हें फ़ोन पर
और बताया, आज है मां का दिन यानि मां-दिवस
जानती तो नहीं कब और क्यों शुरू हुआ ये दिन
जानती बस इतना हूं, है अधूरा हर दिन, तुम बिन
दूर हूं, पर तुम हो दिल में हर पल-छिन
है दुआ, रहे तुम्हारी ममता छाया हम पर बरसों बरस
और बस रहें गुज़रते यूं ही दिन
ख्याल आता है कभी–कभी
कैसे काल के कपाल में समा गया था
हम सबका रखवाला
बुला लिया था जिन्हें ईश्वर ने अपने पास
और छोड दिया था इस जहां में हमें
बिलकुल बेसहारा
इस आंधी, तूफां और पतझड के बीच
तब तुम बनी हमारी ढाल
नहीं चली इस बेदर्द, बेरहम ज़माने में
किसी की कोई चालाकी कोई चाल
हमें तो पता ही नहीं चला
कि तुमने सहा क्या–क्या
हमें तो तुमने महसूस भी नहीं होने दी
उसकी तपिश
तुम्हारे सीने जो जला, उसका धुआं
तुमने तो अपनी हर कोंपल को
खिलने, फलने फूलने का
पूरा और हर संभव मौक़ा दिया
तुमसे बनी शाखाएं आज बढ चुकी हैं
जो किसी और की होकर
तुम्ही से दूर हो चुकी हैं
फिर सोचा शाखाएं बडी चाहे जितनी हो जाएं
पर क्या पेड की जडों से दूर है हो सकती
चाहे कोई गुलशन महकाए पर
उसकी महक तुमसे अलग नहीं हो सकती
जैसे रगो में ख़ून बनकर बहते
तुम्हारे दूध की कोई क़ीमत नहीं हो सकती
नहीं हो सकता दुनिया में तुझसा कोई फरिश्ता
शायद इसीलिए कहते हैं कि
मां ! तुझसा नहीं कोई रिश्ता

लता

4 comments:

दिलीप said...

मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

अजय कुमार said...

संसार की समस्त माताओं को नमन

sumit said...

ma ki mamta to janam jnmanter tak rahti hai

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रचना!