Friday, April 30, 2010


Raipur, 30 April 2010. छत्तीसगढ परीक्षा मंडल ने फुर्ती दिखाते हुए शुक्रवार को 12वीं कक्षा के नतीजे घोषित कर दिये। एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए माध्यमिक शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा की एक महिने के भीतर नतीजे घोषित करके शिक्षा मंडल ने ना केवल काबिलियत और पुख्ता तैयारी का परिचय दिया है बल्कि उन प्रदेशों के सामने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है जो तकनीकी शिक्षा के लिए अग्रणी कहे जाते हैं।

इससे पहले शिक्षा मण्डल के प्रमुख के.डी.पी.राव ने बताया कि इस वर्ष 1 लाख 81 हज़ार छात्र-छात्राएं 12 वीं की परीक्षा में बैठे थे जिनमें से 46000 ने प्रथम श्रेणी और 66000 ने द्वितीय श्रेणी से परीक्षा पास की। 12वीं पास छात्र-छात्राओं की सफलता का कुल प्रतिशत 76.66 फीसदी रहा।

राव ने बताया कि बिलासपुर के सुधीर देवांगन ने इस परीक्षा में टाप किया है। उन्हें 96.6 प्रतिशत अंक मिले। 96.2 फीसदी अंक लेकर दुर्ग के मोहनीश दूसरे स्थान पर रहे और तीसरा स्थान कांकेर ज़िले के समीर दता को मिला, जिन्हे इस परीक्षा में 95.2 प्रतिशत अंक हासिल हुए।

Thursday, April 29, 2010

परी कथा



परियों के देश की वो कहानी भी ख़ूब थी
जिसमें थी एक परी, नाज़ों-नखरे में पली
हाथ में जादू की छड़ी, बदलने दुनिया को चली
पर क्या जादू सच्चा होता है
ऐसा सपना क्या हक़ीकत होता है। नहीं ना !
पर मैने देखी है एक परी
जो इस दुनिया की हक़ीकत में है पली
फिर भी रहती है खिली-खिली
अपनी हंसी से हर तरफ़ बिखराती
हर पल खुशी है वो मनचली
जो हंसती है, खिलखिलाती है
मुस्कुराती, इठलाती
और रूठ भी जाती है
लेकिन झट से मान भी जाती है
सभी के दिल में उमगें जगाती है
जीने का सही अहसास दिलाती है
वो ख़ुशबू है, वो तितली है
वो बारिश है, वो बिजली है
वो सांस है, वो विचार है
वो जीवन का संचार है
रिश्ता सिर्फ बनाती नहीं, वो निभाती है
सबमें विश्वास जगाती है
जो नये उत्साह, नई उमंग
ऊर्जा और रंगों की केन्द्र है
जिसके स्वामी गजेन्द्र है
विनम्रता और मधु स्वभाव से
जिसने दिलों को जीता है
प्यार से सभी घर वाले
कहते उसे स्मिता हैं।
हम जैसो को कौन पूछता
भला ऐसे भी कोई जीता है
इसलिए मस्त रहो, पकोड़े खाओ और चाय पीओ
क्योंकि चीता भी पीता है।

Tuesday, April 27, 2010

फुलकारी



हर वक्त मुनासिब होता है
मंज़र मनमाफ़िक होता है
बढ़ने वाले कब रुकते हैं
मुश्किल जीवन का सौदा है
सुख पल दो पल का धोखा है
जो उठता है और लडता है
ये वक्त उसी का होता है
लक्ष्य वही हासिल करता है
जो पहला कदम बढ़ता है
डरपोक किनारे रहता है
तैराक नदी तर जाता है
दिल बाग-बाग हो जाता है
बागों में छाए हरियाली
फूलों को भी पड़ता शर्ममाना
जब हसें हमारी फुलकारी

Sunday, April 25, 2010

रंग




जिंदगी है एक कैनवास
सपने हैं रंग
ख्वाहिशों की ऊंचाईयां
हक़ीकत की जंग
बहुत हंसी है हर पल
क्योंकि तुम हो मेरे संग
तुम सांसों में, तुम धड़कन में
तुम आंखों में, तुम ही मन में
तुम सुबह में, तुम शामों में
तुम बातों मे, तुम रातों में
तुम ही तो हो जज्बातों में,
तुम गीत हो, संगीत हो
हर तूफां में, हर मुश्किल में
तुम ही तो मेरी जीत हो
तुम हवा हो, तुम पानी हो
सच्चे शायर की ग़ज़ल हो जैसे
तुम हर पल नई कहानी हो
जमुना तट पर बजती बंसी
मंदिर में बजती घंटी हो
कोई भी लट्टू हो जाए
जब मंद-मंद तुम हंसती हो
माशूका ऐसी सब चाहें
जिसमें इतनी सब ख़ूबी हो
मैं खुशनसीब, तुम मेरी हो
मेरी जानम, मेरी बीवी हो
पर याद रहे इन रिश्तों में भी
पहचान नहीं अपनी खोना
तुम मुझसे हो, तो तुमसे मैं हूँ
तुझसे ही है मेरा होना
जीवन जीने की आपाधापी में
ना ख़ुद को तुम खोने देना
हम सबको साबित करना है
अपना-अपना मानव होना
हम साथ हैं, कुछ कर पाऐंगे
हर मुश्किल से लड़ जाऐंगे
मशहूर हुए लोगों में एक दिन
अपनी भी जगह बनाऐंगे
जब मैं हूंगा साठ बरस का
और तुम होगी तिरपन की
एक दूजे में खो जाऐंगे
बातें करते बचपन की
छोड़ो-छोड़ो इतनी लंबी
बातें करें आजकल की
काम बहुत है, चिंता लग गयी
फिर महिने के वेतन की
इसलिए छोड़ बातें बेकार की,
बोलो हाथी घोड़ा पालकी, जै कन्हैया लाल की।

मानवता सिखलाएं



बिल्ली कहती म्याऊँ-म्याऊँ
रुक जा चूहे अब मैं आऊँ
तुझको मैं खा जाऊँगी
अपनी भूख मिटाऊँगी
फिर जल्दी से पेड़ पे चढ़के
चुपके से सो जाऊँगी
चूहा बोला बिल्ली मौसी
तुम तो कितनी प्यारी हो
हमको खाकर क्या पाओगी
तुम तो राजदुलारी हो
हमें मारकर पछताओगी
वापस घर कैसे जाओगी
जिस राह से तुमको जाना है
वहां बैठा कुत्ता मामा है
वो तुमको खा जाएगा
फिर तुम्हें कौन बचाएगा
आओ मिलकर रहना सीखें
दूजे का दुख भी सहना सीखें
फिर ना कोई डरेगा तुमसे
इज्ज़त तुमको देगा दिल से
साथ में हम सब खाऐगें
झूमें-नाचे-गाऐंगे
आपस में लड़ते इंसानों को
मानवता सिखलाऐंगे।

Friday, April 23, 2010

पाखी



जब नदी किनारे बैठा कोई
अंतर्मन को खोजे फंसा कोई हो अंतर्द्वन्द में,
राह ना कोई सूझे तने भवें, चेहरा गुस्से से
लाल तमतमा जाए
मुट्ठी भींचे, दांत पीसकर
सूरज को घूरे जाए
जब हो हताश, वो हो निराश और दिल घबरा जाए
वो हो बेचैन, मन व्याकुल हो
पर राह नज़र ना आए
तब चुपके से, तब धीरे से
फर्र-फर्र सी पाखी आए
एक झटके में, एक पल में वो
सारी चिंता हर जाए
वो मंद-मंद, हौले-हौले उस बरगद के
पत्तों पे रुक जाए
फिर पलकें बंद हो जाए
कूके पाखी, तुम्हें सपनों की
दुनियां में ले जाए
पंखों की होडा-होडी से
तुम्हें गगन सैर करवाए
चाहे हो कितना दूर क्षितिज
वो हवा से पेच लडाए
वो रुके नहीं, वो थके नहीं
बस उडती–उडती जाए
तुम्हें राह मिले अपनी मंज़िल की
हर इच्छा पूरी हो जाए
हर झोंका संचार करे
हर अंतर्द्वंद मिट जाए
फिर आए एक पवन हिलोरा और
नींद तेरी उड जाए
अब हर मुश्किल आसां सी दिखे
कोई कष्ट नज़र ना आए
मन केवल इतना चाहे
जीवन में सबके तू पाखी
एक नया सवेरा लाए

Tuesday, April 20, 2010

गुडियों सी




दिखती हो तुम गुडियों सी
पग थिरकाते प्यानों पर
हाथों में पंखा पकडे
कुछ जापानी गुडियों सी
दिखती हो तुम गुडियों सी

आंखों से जादू बिखराती
मुझको अपने पास बुलाती
लाल गुलाबी पंख दिखाती
उन सतरंगी परियों सी
दिखती हो तुम गुडियों सी

जब मैं बैठा रात निहारूं
चांद को देखूं तुम्हें पुकारूं
सांसें छू ले याद तेरी
सनसनी हवा की लडियों सी
दिखती हो तुम गुडियों सी

हाथ तेरा माथे को चूमे
तू गाकर मुझे सुलाए
छम से आती, हंसी लुटाती
लगती हो फुलझडियों सी
दिखती हो तुम गुडियों सी

Tuesday, April 06, 2010

चला जा रहा था

चला जा रहा था
ज़िन्दगी की इस दौड में
चिलचिलाती धूप में
बेरंग और बेरूप मैं
बस चला ही तो जा रहा था

तभी नज़र आई
उमडती हुई सी
सावन की बदली
कभी चमकती
कभी फडकती
पल-पल दमकती
जैसे हो बिजली
घटाओं के पीछे
हवाएं कह रही हैं
सुकूं अब मिलेगा
उम्मीद दे रही हैं
कल की खुशियां
कल के पल को
जैसे ज़ुबां दे रही हैं

वो पाक़, वो शफ्फाक
वो हमनशीं, वो दिलो ख़ास
चांदनी से सराबोर
कुछ और
वो कुछ और
छम-छम सी करती
मेरे क़रीब आ रही है

ग़लत हैं जो चांद सिर्फ एक बताते हैं
हमसे पूछिए, हम आपको ज़मीं पे
एक और चांद दिखाते हैं
आसमां का चांद तो केवल
रात में दिखता है

पर मेरा चांद
सुबह-शाम, दिन-रात
हर पल यूं ही चमकता है
वो आसमां का हिस्सा है
पर ये चांद ना जाने किसका है

जाने क्यों अब
रुक जाने को दिल करता है
उसे पास बुलाने
उसकी बेबाक सी बातें
सुनते जाने को दिल करता है
उसकी मासूम हंसी पे
लुट जाने को दिल करता है
उसकी निश्छल, चंचल
बेलोस हरक़तों पर
मुस्कुराने को दिल करता है
कभी झील सी आंखों में
डूब जाने को दिल करता है
और हर बार ख़ुदा से
बस यही दुआ करता है

कभी दुख उस तक ना पहुंचे
कोई आंच उसे ना आए
जीवन का हर पल उसका
खुशियों से भर जाए ॥

तुम थी . . .



कभी देखा है ?
बादल को जाते, पानी की तलाश में
सहरा को तड़पते, गर्मी की आस मे
वृक्ष को खड़े, मुसाफिर की राह में
या फिर मंजिल से दूर
किसी मोड़ पर खड़े राहगीर को
एक साथी की तलाश में
सभी हैं इंतज़ार में, एक हमसफ़र की
जो साथ चले , चलता जाए
और दूर क्षितिज को पा जाए
हम भी बिस्तर में पड़े सोच रहे थे
की तभी, हर रोज़ की तरह नींद हमारे पास आई
हमने पूछा – एक काम कर सकती हो ?
क्या आज ख्वाबों में उनका रंग भर सकती हो ?
उसने मुस्कुरा कर देखा और आगोश में भर लिया
पलक झपकी तो सामने थी भोर
मौसम की ठंडक, पवन मद्धम
मुर्गे की बांग, दूधिये की साईकिल घंटी
और दूर पहाड़ी से आती – एक छवि
भेड चराती, दौड़ती, मस्ताती, महक बिखराती
नई ताज़गी से भरी, मेरे पास आकर रूकती, हांफती सी
तभी नज़र आई उसके चेहरे से टपकती पसीने की बूँद
जैसे पलाश के फूल पर भोर मैं गिरी ओस की बूँद
छूना ही चाहा था कि शर्मा गई
हम तो ख़्वाबों में थे पर भोर सचमुच आ गई
जाते जाते मगर इतना बतला गई
की वो धुंधली तस्वीर जिसकी थी
वो कोई और नहीं - तुम, सिर्फ तुम थी

Sunday, April 04, 2010

अर्ज़ है . . .







बस इतनी अर्ज़ हमारी है!





ज़हनों से हटे झुर्री ना सही
पर मन तो बच्चा हो जाए
जंगल पे नहीं दावा हमको
इक पेड तो सच्चा हो जाए
ये सोच के नाटक करते हैं
शायद कुछ अच्छा हो जाए
अब चेहरा बदलो या शीशा
ये आपकी ज़िम्मेदारी है
अच्छा सोचो, अच्छा बोलो
बस इतनी अर्ज़ हमारी है।

मां

मां
वो नाम जो हर बच्चे की ज़ुबां पर
सबसे पहले आता है
या कहें वो इंसान जो बच्चे को
जीने का मतलब समझाता है
मां, बच्चे को दुनिया में आने का मौक़ा देती है
देती हैं सांसे, धडकन और एक अहसास
अहसास उसके होने का
उसके वजूद का
रखती है ख़्याल उसकी हर ज़रूरत
हर सपने का
बिना किसी परवाह के
बिना घाटे और मुनाफ़े का हिसाब लगाए
उसे सिखाती है ज़मीन पर पहला क़दम रखना
बिना ये सोचे की उम्र के ढलान पर
जब उसे ज़रूरत होगी उनकी
तो क्या वो बच्चे उसके साथ खडे होंगे
क्योंकि केवल मां का ही प्यार होता है
निश्छल, निस्वार्थ और निष्कपट
इसलिए उसे भगवान का दर्जा दिया गया है
और की जाती है पूजाहम भी तुम्हें नमन करते हैं
और करते हैं कामना
जीवन की हर पहरी में
सुबह - शाम और दोपहरी में
हो जाए जो भूल कोई
बुरा नहीं तुम मानकर
माफ़ हमें फिर से कर देना
आज भी बच्चा जानकर