Friday, August 20, 2010

सरकार है कि चेतती ही नहीं …


सरकार ने इस बार राज्योत्सव को बहुत ही भव्य स्तर पर ‘मेगा राज्योत्सव’ मनाने की घोषणा की है। सरकार के मुताबिक इस आयोजन की गूंज पूरे देश में सुनाई देगी। ज़ाहिर है एक बार फिर से करोडों रुपये खर्च होंगे और पैसे की बंदरबाट होगी। राज्योत्सव की थीम 10 वर्षो की विकास यात्रा पर केंद्रीत होगी। दरअसल सरकार ऐसे भव्य आयोजनों के ज़रिए जनमानस पर अपनी सफ़लताओं और उपलब्धियों का जामा चढाकर इस बार छत्तीसगढ शाइनिंग का रंग चढाना चाहती है और तेज़ी से हावी होते बाज़ारवाद के दौर में छत्तीसगढ को एक ब्रांड बनाना चाह्ती है।

मुख्यमंत्री ने बडे जोशो-ख़रोश के साथ इस अवसर पर एक डाक टिकट भी जारी करने की इच्छा ज़ाहिर की है। उम्मीद है कि उसे केन्द्र से स्वीकृति भी मिल जाएगी। पर क्या इससे उन मासूमों का दर्द कम हो जाएगा जिन्हें जीने के लिए रोज़ी रोटी नहीं मिल पा रही है। वो बात दीगर है कि काग़ज़ों में ना तो ये भूख और ना ही भूखे नज़र आते हैं।

चाहे विधानसभा में हंगामा हो और चाहे वो ग़रीब दवा और इलाज के अभाव में स्वर्ग सिधार जाएं लेकिन इन तक शायद उनका दर्द और उनकी कराह की आवाज़ नहीं पहुंच पाती है। इस मुद्दे को बाक़ायदा इलाके के विधायक द्वारा पुरज़ोर तरीक़े से उठाया गया लेकिन विभाग के मंत्री जी ने मामले को बहुत ही हल्के लेते हुए सबकुछ सामान्य होने का दावा कर दिया।

प्रदेश में दिन ब दिन बढती नक्सली वारदातों के बीच होने वाली मौतें अब महज़ एक आंकडा बनकर रह गयी हैं जो हर रोज़ कुछ और बढ जाती है। मगर सवाल यह है कि इनमें से कौन उन मासूम, बेसहारा गरीब आदिवासियों के घर जाता है जिनकी ज़िंदगी का एकमात्र सहारा अचानक किसी ना किसी की गोली की भेंट चढ जाता है। फिर कुछ बयानबाज़ी होती है और यह महज़ एक मामला बनकर कहीं फाइलों में ग़ुम हो जाता है

एक बार फिर सरकार उपलब्धियों का ज़ोरदार जश्न मनाते समय भूल जाएगी कि हर साल की तरह इस बार भी बहुत से स्कूलों में बैठने आधारभूत ज़रूरतें मुहैया नहीं करवा सकी है। इस बार भी थोडी सी ही बरसात ने स्कूलों को पानी से सराबोर कर दिया और कोई रास्ता ना देख शिक्षकों को कई दिन बच्चों की छुट्टी करनी पडी। यह बात मैं किसी दूरस्थ अंचल में बसे छोटे गांव की नहीं कर रहा हूं बल्कि प्रदेश की राजधानी रायपुर की ही कर रहा हूं और इलाके के विधायक आज सरकार में मंत्री हैं।
बस्तर संभाग में मलेरिया और उल्टी दस्त से हुई मौतें किसी से छुपी नहीं हैं। लोग आज भी बेरोज़गारी के आगे घुटने टेकने को मजबूर हैं और पलायन कर रहे हैं, इस बात का जीता जागता उदाहरण लेह से लौटे वो दर्जनों लोग हैं जिनका हाल पूछने खुद मंत्री जी बिलासपुर पहुंचे थे। किसान बेबस हैं और प्रदेश के ही एक इलाके पंखाजूर के किसानों ने तो सरकार को आत्महत्या तक की धमकी दे डाली है। बेशक प्रदेश में किसी किसान की आत्महत्या की घटना नहीं हुई है लेकिन अगर ऐसा ख्याल भी उसके दिमाग में आता है तो विकास के दावे कितने खोखले नज़र आते हैं, शायद कहने की ज़रूरत नहीं है।

राजधानी की सडकों के गढ्ढे दिन ब दिन बढते जा रहे हैं लेकिन सरकार नए बस रहे रायपुर की तस्वीरें दिखाती हैं वहां की उन चमचमाती सडकों को दिखाते इतराती है जिन पर अभी चलने को कोई नहीं है।

जिस प्रदेश में हाउसिंग बोर्ड किसानों की ज़मीन औने-पौने दामों में लेकर करोडों में बेचता है वह प्रदेश तो सचमुच विकासशील कहलाएगा ही। दूसरे प्रदेशों में हाउसिंग बोर्ड लोगों को सस्ते और सुविधाजनक मकान मुहैया कराने के लिए जाने जाते हैं वहीं छत्तीसगढ हाउसिंग बोर्ड नए रायपुर में पचास लाख तक के मकान बना रहा है क्योंकि कहीं ना कहीं वो ख़ुद जानता है कि सरकार की कथनी और करनी में कितना अंतर है। इसीलिए उसे उन 36 लाख गरीब परिवारों की बजाए केवल प्रदेश के एक चौथाई लोगों की ही चिंता है।

अगर इसे ही विकास कहा जाता है तो सचमुच प्रदेश ने बहुत विकास किया है, बहुत उपलब्धियां हासिल की है। वाकई इसे किसी ना किसी तरह प्रदेश की भाजपा सरकार की जीत कहा जाएगा। जीत का जश्न तो झूमकर मनाया ही जाना चाहिए।

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