Tuesday, August 03, 2010

कुछ भी तो नहीं

आज अपना ही ब्लाग देखा तो ध्यान आया कि इतने दिनों से कुछ नहीं लिखा। वैसे सच कहूं लिखने को तो आज भी कुछ नहीं है। आज गया था साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित एक रचना पाठ में। कवि और लेखकों का एक अच्छा ख़ासा जमावडा देखकर अच्छा भी लगा और हैरानी भी हुई कि साहित्य गोष्ठी में इतने लोग ...? वो भी सुबह से लेकर शाम तक . . . ?

देखकर अच्छा लगा। बहुत बडे और नामी लोग भी शामिल हुए थे पर बताते हुए दुख होता है कि ज़्यादातर कवि और लेखक प्रभावित नहीं कर पाए। केवल कुछ लोग ही अपनी रचनाओं से लोगों के दिलों में कुछ उथल-पुथल मचा सके। वैसे श्रोताओं ने अपने-अपने परिचित लेखकों को रस्म के मुताबिक बधाई ज़रूर दी। अब वो कितनी सही थी और कितनी खुश करने की कोशिश या फिर .... अब यह तो वे ही ज़्यादा समझ सकते हैं। ख़ैर हमें इससे कोई मतलब भी नहीं। हम किसी का नाम तो नहीं लेंगे लेकिन कुछ रचनाएं बहुत बेहतर लगी।

एक पुलिस वाले शख्स की क़लम से निकली कुछ संवेदनशील कविताएं सचमुच सोचने पर मजबूर कर देती हैं। वे हत्या और आत्महत्या का मतलब बडी गहराई से समझाती हैं। वो प्रश्न भी खडा करती हैं कि और हमीं से पूछती हैं आप किधर जाएंगे ? एक दूसरे साहब बडी ही शालीनता से अपनी बातें रखते कुछ उग्र नज़र आए।

एक लेखक ने अपनी रचना में अपने ही प्रदेश की एक रेल का ज़िक्र करते हुए अपने अनुभव को जैसे कहानी में उतारा था और बडे ही बेहतर प्रस्तुतिकरण के माध्यम से कहानी का मर्म श्रोताओं तक पहुंचाया था।

ख़ैर कुल मिलाकर यह गोष्ठी एक सकारात्मक प्रयास रहा। उसके लिए आयोजकों को बधाई।

1 comment:

Rahul Singh said...

जो अच्‍छा लगा, पसंद आया उसका नाम बताने में क्‍यों संकोच कर गए आप.