Tuesday, April 06, 2010

चला जा रहा था

चला जा रहा था
ज़िन्दगी की इस दौड में
चिलचिलाती धूप में
बेरंग और बेरूप मैं
बस चला ही तो जा रहा था

तभी नज़र आई
उमडती हुई सी
सावन की बदली
कभी चमकती
कभी फडकती
पल-पल दमकती
जैसे हो बिजली
घटाओं के पीछे
हवाएं कह रही हैं
सुकूं अब मिलेगा
उम्मीद दे रही हैं
कल की खुशियां
कल के पल को
जैसे ज़ुबां दे रही हैं

वो पाक़, वो शफ्फाक
वो हमनशीं, वो दिलो ख़ास
चांदनी से सराबोर
कुछ और
वो कुछ और
छम-छम सी करती
मेरे क़रीब आ रही है

ग़लत हैं जो चांद सिर्फ एक बताते हैं
हमसे पूछिए, हम आपको ज़मीं पे
एक और चांद दिखाते हैं
आसमां का चांद तो केवल
रात में दिखता है

पर मेरा चांद
सुबह-शाम, दिन-रात
हर पल यूं ही चमकता है
वो आसमां का हिस्सा है
पर ये चांद ना जाने किसका है

जाने क्यों अब
रुक जाने को दिल करता है
उसे पास बुलाने
उसकी बेबाक सी बातें
सुनते जाने को दिल करता है
उसकी मासूम हंसी पे
लुट जाने को दिल करता है
उसकी निश्छल, चंचल
बेलोस हरक़तों पर
मुस्कुराने को दिल करता है
कभी झील सी आंखों में
डूब जाने को दिल करता है
और हर बार ख़ुदा से
बस यही दुआ करता है

कभी दुख उस तक ना पहुंचे
कोई आंच उसे ना आए
जीवन का हर पल उसका
खुशियों से भर जाए ॥

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